जम्मू-कश्मीर से निकला एक अनोखा भारतीय मार्शल आर्ट और लड़ाकू खेल है स्के। 16 राज्यों के 250 से अधिक एथलीटों के लिए नया है जो अभी गोवा में जारी 37वें राष्ट्रीय खेलों में भाग ले रहे हैं।
सशस्त्र युद्ध तकनीकों पर जोर देने के लिए लोकप्रिय स्क्वे का अभ्यास अक्सर लकड़ी के हथियारों, खासकर लाठी की एक जोड़ी के साथ किया जाता है। 'स्क्वे' शब्द फ़ारसी शब्द 'साई' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'क्लब' या 'छड़ी' होता है।
स्क्वे में, अभ्यासकर्ता लाठी या अन्य पारंपरिक हथियारों का उपयोग करके विभिन्न आक्रामक और रक्षात्मक तकनीक सीखते हैं, जिनमें स्ट्राइक, ब्लॉक, किक और ग्रैपलिंग मूव्स शामिल हैं। इस खेल में आत्मरक्षा और युद्ध रणनीति के तत्व भी शामिल हैं।
जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व करने वाली स्क्वे एथलीट दिशा ने कहा, '' स्क्वे न केवल शारीरिक अनुशासन से जुड़ा एक खेल है, बल्कि मानसिक अनुशासन, ध्यान और सबसे महत्वपूर्ण आत्मविश्वास को बढ़ावा देने का एक तरीका भी है। यह कश्मीरी लोगों की सांस्कृतिक विरासत का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है और बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि यह खेल वर्तमान में दुनिया भर के 62 देशों में खेला जाता है।''
उन्होंने कहा, '' हमारे लिए, स्क्वे को राष्ट्रीय खेलों जैसे आयोजन में मान्यता मिलना बड़े सम्मान की बात है। इसके अलावा, बहुत से लोग हमारे पास आए हैं और स्क्वे की बारीकियों के बारे में जानना चाहते हैं। इसलिए, यह हम सभी के लिए एक खास पल है।''
मार्शल आर्ट और लड़ाकू खेलों के अन्य रूपों की तुलना में, स्क्वे को समझना एक बाहरी व्यक्ति के लिए एक टास्क हो सकता है। स्क्वे फेडरेशन ऑफ इंडिया के महासचिव मीर नजीर ने भी इस खेल के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
नजीर ने कहा, '' एथलीट सबसे पहले, बुनियादी रुख, फुटवर्क और बुनियादी स्ट्राइक सीखना शुरू करते हैं। ये गतिविधियां स्क्वे में एक मजबूत नींव बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। एक एथलीट को स्टांस और स्ट्राइक में महारत हासिल करने के लिए वर्षों से कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। यह बिल्कुल भी आसान खेल नहीं है।''
स्क्वे को दो भागों में बांटा गया है, एक- लड़ाकू कार्यक्रम और दूसरा- कलात्मक कार्यक्रम। इसके अलावा, इस हमले और बचाव खेल में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा कश्मीरी है, जिसमें अंकों की गिनती भी शामिल है, जिसका अनुवाद गैर-स्थानीय लोगों के लिए उपलब्ध है।
नजीर, खुद एक ग्रैंडमास्टर हैं और पूरे देश में स्क्वे को बढ़ावा देने में जुटे हुए हैं। उन्होंने भारत में खेल के शुरुआती दिनों को याद किया जब एथलीटों को खेल खेलने के लिए न तो उचित स्तर तक पहुंच थी और न ही इसमें भाग लेने के लिए देश के अन्य हिस्सों की यात्रा करने का अवसर था।
उन्होंने कहा, '' स्क्वे के लिए यह एक लंबी यात्रा रही है। एक समय था, जब हम एथलीटों के रूप में, हमें सीमित अवसरों के बावजूद, देश के अन्य हिस्सों की यात्रा करने के लिए वास्तव में संघर्ष करना पड़ता था। मुझे याद है कि मैंने विभिन्न टूर्नामेंटों में भाग लेने के लिए अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों से पैसे उधार लेकर अपने टिकट बुक किए थे।''
नजीर ने आगे कहा, '' हालांकि, चीजें अब काफी बेहतर हैं। एथलीटों को उनकी कड़ी मेहनत के लिए पहचान मिल रही है। यहां तक कि गोवा में बुनियादी ढांचा और सुविधाएं भी शानदार हैं। इसलिए, यह देश भर के इतने सारे युवा एथलीटों के लिए एक बड़ी प्रेरणा है जो स्क्वे में भाग ले रहे हैं।''
उन्होंने कहा, '' यह केवल स्क्वे के बारे में नहीं है, बल्कि हमें अन्य खेलों के बारे में भी बात करनी चाहिए, जिन्होंने इस साल गोवा में अपनी शुरुआत की, जैसे पेंचाक सिलाट, लागोरी, कलारीपयट्टू, रोलबॉल, सेपक टकरा और मिनी गोल्फ। ये सभी खेल भारतीय संस्कृति में गहराई से रचे-बसे हैं और इस साल उन्हें चमकने के लिए आदर्श मंच देने के लिए हम भारत सरकार के आभारी हैं।''